Abida Parveen Faiz by Abida - Abida Parveen - 01 Gul Hui Jati Hai Lyrics

गुल हुई जाती है अफ़सुर्दा सुलगती हुई शाम
धुल के िनक्लेगी अभी चश्म-ए-माहताब से रात
और मुश्ताक िनगाहों की सुिन जाएगी
और उन हाथों से मस होंगे ये तरसे हुए हाथ

उन का आंचल है िक रुखसार िक पैराहन है
कुछ तो है िजस से हुई जाती है िचलमन रंगीन
जाने उस ज़ुल्फ़ िक मौहूम घनी छावं में
िटमिटमाता है वो आवेज़ा अभी तक के नही

आज िफर हुस्न-ए-िदल-अारा की वो ही धज होगी
वो ही ख्वाबीदा सी आंखें वो ही काज़ल की लकीर
रंग-ए-रुखसार पे हल्का सा वो गाज़े का गुबार
सन्द्ली हाथों पे धुन्धिल सी िहना की तहरीर

ये खूं की महक है िक लब-ए-यार िक खुशबू
िकस राह की जािनब से सबा आती है देखो
गुलशन मे बहार आई के िज़न्दा हुआ आबाद
िकस संग से नगमों की सदा आती है देखो

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